विषमुक्त विश्व और कृषि: प्रकृति बचाने की दिशा में एक कदम
आज पूरी दुनिया पर्यावरणीय संकटों का सामना कर रही है। प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और भूमि की उर्वरकता में कमी जैसे मुद्दे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इन चुनौतियों के बीच “विषमुक्त विश्व” की अवधारणा विशेष महत्व रखती है। विशेषकर कृषि क्षेत्र में यदि हम रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग बंद करें और प्राकृतिक खेती की ओर लौटें, तो हम न केवल किसानों का जीवन बेहतर बना सकते हैं बल्कि प्रकृति को भी बचा सकते हैं।
रासायनिक खेती की चुनौतियाँ
मिट्टी की उर्वरकता तेजी से घट रही है।
भूजल और नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं।
सब्जियों और अनाज में रासायनिक अवशेष इंसानों की सेहत को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
जैव विविधता (पक्षी, कीड़े-मकोड़े, केंचुए आदि) नष्ट हो रही है।
विषमुक्त खेती के लाभ
मिट्टी की सेहत में सुधार – जैविक खाद और गोबर खाद से मिट्टी पुनः उपजाऊ बनती है।
स्वास्थ्य लाभ – उपभोक्ताओं को शुद्ध, पौष्टिक और सुरक्षित भोजन मिलता है।
पर्यावरण संरक्षण – रासायनिक प्रदूषण घटने से नदियाँ और भूजल सुरक्षित रहते हैं।
लागत में कमी – बीज, खाद और कीटनाशकों पर निर्भरता घटने से किसानों का खर्च कम होता है।
जैव विविधता का संरक्षण – पक्षी, मधुमक्खी और प्राकृतिक परागणकर्ता वापस लौट आते हैं।
अपनाई जाने वाली तकनीकें
जैविक खाद: गोबर, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग।
प्राकृतिक कीटनाशक: नीम का तेल, लहसुन-खीरा मिश्रण जैसी घरेलू विधियाँ।
मिश्रित खेती: एक ही खेत में अलग-अलग फसलें उगाकर कीटों पर नियंत्रण।
जल संरक्षण: टपक सिंचाई और वर्षा जल संचयन।
स्थानीय बीजों का उपयोग: पारंपरिक और देसी बीज अधिक टिकाऊ और रोग प्रतिरोधक होते हैं।
निष्कर्ष
यदि हम सच में एक “विषमुक्त विश्व” की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरुआत खेती से करनी होगी। किसानों को प्राकृतिक एवं जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना, उपभोक्ताओं को जागरूक करना और सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी होंगी जो रासायनिक खेती पर निर्भरता घटाएँ।
इस तरह हम आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित, शुद्ध और प्रकृति-सम्मत जीवन दे सकते हैं।
 
	 
											 
			 
			 
			
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